Swati Sharma

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लेखनी कहानी -07-Nov-2022 हमारी शुभकामनाएं (भाग -30)

हमारी शुभकामनाएं:-


दहेज प्रथा:-

                 हमारा सामाजिक परिवेश कुछ इस प्रकार बन चुका है कि यहां व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके आर्थिक हालातों पर ही निर्भर करती है। जिसके पास जितना धन होता है उसे समाज में उतना ही महत्व और सम्मान दिया जाता है। ऐसे परिदृश्य में लोगों का लालची होना और दहेज की आशा रखना एक स्वाभाविक परिणाम है। आए दिन हमें दहेज हत्याओं या फिर घरेलू हिंसा से जुड़े समाचारों से दो-चार होना पड़ता है। यह मनुष्य के लालच और उसकी आर्थिक आकांक्षाओं से ही जुड़ी है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिसे जितना ज्यादा दहेज मिलता है उसे समाज में उतने ही सम्माननीय नजरों से देखा जाता है।

                 पहले इस प्रथा के प्रचलन में भेंट स्वरूप बेटी को उसके विवाह पर उपहारस्वरूप कुछ दिया जाता था परन्तु आज दहेज प्रथा एक बुराई का रूप धारण करती जा रही है । दहेज के अभाव में योग्य कन्याएं अयोग्य वरों को सौंप दी जाती हैं । लोग धन देकर लड़कियों को खरीद लेते हैं । ऐसी स्थिति में पारिवारिक जीवन सुखद नहीं बन पाता । गरीब परिवार के माता-पिता अपनी बेटियों का विवाह नहीं कर पाते क्योंकि समाज के दहेज-लोभी व्यक्ति उसी लड़की से विवाह करना पसंद करते हैं जो अधिक दहेज लेकर आती हैं ।
                 आज दहेज का दावानल पूरे के पूरे युवा पीढ़ी को निगल रही है। आज बेरोजगार और बेकार युवा की कीमत दो लाख तक लग जाती है और नौकरी बालों की बोली तो जब लगती है तो जो सर्वाधिक दे उसी के हाथ बिकेगा। दहेज का डायन होने के कई प्रमाण है और सबसे बड़ा प्रमाण यह कि जब बहू जब घर में आती है तो अपने साथ दहेज के अभिमान को भी लेकर आती है नतीजा सुख-चैन की समाप्ति हो जाती है और बहूओं के आत्महत्या इसका चरम है। आज दहेज के औचित्य पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे है। सबसे पहला यह कि हम दहेज लेकर अपनी शानो-शौकत का जो दिखावा करते है क्या वह उचित है? दूसरे के पैसा पर यह दिखावा झूठी शान ही तो है? यदि दिखावा ही करना है तो अपने पैसे से करें। दहेज का रेट आज सातवें आसमान पे है। इसके लिए केवल दहेज लेने वाला ही दोषी नहीं बल्कि देने वाला भी उतना ही दोषी है। आज चपरासी भी नौकरी लगी नहीं कि उसे खरीदनो वालों की लाइन लग जाती है और न तो उसके संस्कार देखे जाते है और न ही उसका चरित्र। इसमें सबसे बड़ा दोषी हमारा युवा वर्ग है जिसके कंधे पर समाज को बदलने की जिम्मेवारी है वही पैसे के पीछे इतनी दिवानगी दिखाता है कि शर्म आ जाए और अभिभावक जब बहू के द्वारा सम्मान नहीं मिलने की बात कहते है तो हंसी आती है।
                     जब भूमिका ने इस प्रथा के विषय में अपनी मां से पूछा तो उन्होंने उसे बताया कि लड़के वालों ने ताऊजी से दहेज नहीं लिया है। भूमिका के ताऊजी जितना दहेज के खिलाफ थे उतना ही लड़के वाले भी दहेज लेना पसंद नहीं करते। सच तो यह था कि भूमिका के ताऊजी ने पहले भी कई रिश्ते सिर्फ दहेज के कारण ठुकरा दिए। ताऊजी का मानना था कि दहेज लेने वालो को सिर्फ भीख देनी चाहिए लड़की नहीं। उन्हें दहेज लेना और देना दोनों ही नागवार थे। उन्होंने ना अपने बेटे के विवाह में दहेज लिया ना ही अपनी बेटी के विवाह में दहेज दिया।
                      यह बिल्कुल सही बात है हमें इस तरह की कुरीतियों को कदापि बढ़ावा नहीं देना चाहिए। आजकल एक नया ही ट्रेंड सामने आया है। जब विव करना होता है तो लड़केवाले शुरुवात में।यह कहते हैं कि हमें तो बस लड़की चाहिए, भले ही दो कपड़ों में।ही भेज दीजिए। पर तू, जब शादी तय हो जाती है, रोका हो जाता है तब उन लोगों के मन में यह इच्छा होती है की लड़की ज्यादा से ज्यादा दहेज लाए सामान के रूप में, नगद के रूप में और शादी के खर्चे के रूप में। अतः दूसरों से यह कहते सुनाई पड़ते हैं। की हमने तो कुछ भी नहीं लिया। इतना तो हर कोई अपनी लड़की को देता है। इसमें कौनसी बड़ी बात है वगेरह वगेरह।
                       जब लड़कियां यह सब सुनती और देखती हैं, तभी से उनके मन से ससुराल वाले उतर जाते हैं, तो फिर बहुओं से सम्मान की अपेक्षा रखना कहां सही है। का। मुझे लगता है जब तक हमारा समाज बहुओं को लक्ष्मी के रूप में देखेंगे तब तक दहेज प्रथा खत्म नहीं हो सकती। जिस दिन बहुओं को पार्वती के रूप में देखने लग गए उन्हें सम्मान भी समान मिलेगा और दहेज का नामों निशान भी इस समाज से मिट जायेगा। यदि यह बदलाव हमारे बड़े बुर्जुग नहीं ला सकते तो युवाओं को इस बदलाव के लिए कदम उठाना चाहिए। या फिर लड़की वाले दहेज देने से बेहतर लड़की को उम्र भर अपने घर में ही रखने को तैयार हो जाएं,और महंगी शादियां करने से मना करने लग जाएं। या फिर जिस दिन लड़का और लड़की दोनों की विदाई शुरू हो गई समाज में दहेज प्रथा का अंत निश्चित हो जाएगा।
                        आज के ज़माने में भूमिका के ताऊजी जैसी सोच वाले व्यक्तियों की बेहद आवश्यकता है। यदि सबकी सोच इस प्रकार सुलझी हुई हो जाए तो निश्चित ही इस कुप्रथा से सभी लड़कियों को छुटकारा मिल जाएगा।

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4 Comments

Gunjan Kamal

18-Nov-2022 08:37 AM

शानदार

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Swati Sharma

18-Nov-2022 09:37 AM

शुक्रिया मेम

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Mohammed urooj khan

18-Nov-2022 01:08 AM

लाजवाब लेख 👌👌👌

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Swati Sharma

18-Nov-2022 09:37 AM

आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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